अध्याय - 1
आज कॉलेज का पहला दिन था सभी प्रथम वर्ष के छात्र पहली बार बी.ए. फ़र्स्ट ईयर की कक्षा में आये थे और करीब-करीब सभी कॉलेज में नए छात्रों के साथ रैगिंग या इन्ट्रो किया जाता है। यहाँ देवी प्रसाद महाविद्यालय में भी यही रिवाज निभाया जा रहा था। कॉलेज के कुछ सीनियर्स इन्ट्रो लेने के नाम पर कक्षा में आ गए थे। फ़र्स्ट इयर की क्लास में आधे से ज्यादा लड़कियाँ ही थी, और इन्हीं लड़कियों के बीच हमारी कहानी की पात्र भी थी मीता, मीता शर्मा। दिखने में आकर्षक और सुंदर।
ग्रुप लीडर जो रैगिंग लेने आया था उसकी नजर जाकर सीधे मीता पर टिक गई।
इधर आओ। ग्रुप लीडर ने कहा।
जी मैं ? मीता ने कहा।
हाँ जी मैं आप ही से कह रहा हूँ। इधर आओ।
मीता उठकर नजदीक आ गई।
पूरी कक्षा में सन्नाटा था सभी छात्र सिर झुकाए खड़े थे तभी ग्रुप लीडर बोला।
नाम क्या है तुम्हारा ?
जी मीता, मीता शर्मा।
कहाँ की रहने वाली हो ?
जी यहीं की। इसी शहर की।
तुम तो बहुत खुबसूरत हो। कभी किसी को प्रपोज किया है ?
जी, नहीं।
तो आज कर लो। चलो मुझे आज प्रपोज करके दिखाओ।
मीता घबरा रही थी उसके हांथ पाँव फूल रहे थे वो कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी।
देखो मैडम, मुझे दोबारा बोलना पसंद नहीं है जल्दी बोलो वरना पूरे क्लास की उठक-बैठक करवाऊँगा।
जल्दी खत्म करिए सर हमें अगली क्लास के लिए जाना है। तभी पीछे से आवाज आई।
ये कौन बोला ? ये कौन बोला ? सामने आओ।
जी सर मैं बोला। पीछे से निकलकर एक युवक बाहर आया।
तुझे बड़ी जल्दी है बाहर जाने की। क्या नाम है तेरा ?
जी मेरा नाम सुबोध है। युवक ने कहा।
ये है हमारी कहानी का दूसरा पात्र सुबोध।
हाँ तो सुबोध महोदय, अगर तुमको जल्दी जाना है तो पहले मेरे चरणों में गिरो, पैर पकड़ो और बोलो - भैया मुझे आशीर्वाद दो कि मैं अच्छे नम्बरों से पास हो सकूँ। आ जाओ बेटा। आ जाओ। ग्रुप लीडर ने कहा।
सुबोध थोड़ा आगे बढ़ा।
सारे लोग एकटक सुबोध को देख रहे थे। मीता भी उसे ही देख रही थी कि वो क्या करेगा।
सुबोध उसके करीब पहुँचा, झुका और अचानक पीछे पलटकर मीता के पास गया और बोला क्या तुम मुझसे शादी करोगी ? फिर जवाब का इंतजार किए बगैर वापस आया और ग्रुप लीडर का पैर पकड़कर बोला -
भैया आशीर्वाद दो कि आपकी बहन मीता को खुश रख सकूँ। ऐसा कहकर वो हॉल से भाग गया।
ये सुनते ही एक जोर की हँसी पूरे हॉल में गुँज गई। ग्रुप लीडर भी हक्का-बक्का रह गया। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि वो क्या करे। वो चुपचाप अपने साथियों के साथ बाहर निकल गया।
मीता भी अपने आप को हंसने से रोक ना सकी।
सुबोध की ये बेवकूफी कहें या समझदारी पूरे क्लास में चर्चा का विषय बन गई। बरबस ही उसने सबका ध्यान आकर्षित कर लिया था आखिर उसने मीता को बचाकर सभी को रैगिंग से मुक्ति दिला दी थी।
वो बाहर निकलकर अपने दोस्तों के साथ कैंटिन में चला गया था। मीता अपने सहेलियों के साथ उसे ढूँढते हुए कैंटिन में पहुँच गई।
सुनिए ?
ओह मीता जी बोलिए ?
आपको पता है आपकी वजह से मुझे कितनी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी।
जी मैं समझ सकता हूँ मीता जी, पर मैं क्या करता कक्षा में किसी ने हिम्मत ही नहीं दिखाई कि उनका विरोध कर सके। मुझे और कोई तरीका सूझा नहीं इसलिए जो दिमाग में आया वो कर दिया। मैं वाकई दिल से क्षमाप्रार्थी हँ। मुझे माफ कर दीजिए।
चलिए कोई बात नहीं। अपने मेरी सुरक्षा के लिए किया, इसलिए धन्यवाद।
इस घटना ने दोनो को एक दूसरे से परिचय तो करवा ही दिया था। इस वजह से कभी कभार दोनो की आँखे अकसर टकरा जाती थी। सुबोध को तो पढ़ाई के सिवा दूसरी किन्हीं बातों से जैसे कोई वास्ता ही नहीं था। नियम से हर क्लास अटेंड करना, लाईब्रेरी से किताब लेना, बातें भी पढ़ाई की करना, यही सब उसकी दिनचर्या थी। कॉलेज में उसके आने का एकमात्र उद्देश्य था पढ़ाई, पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई। वह अपने उद्देश्य से कभी भी पीछे नहीं हटता था। वहीं उसके सारे दोस्त कॉलेज लाईफ एंजाय करने में लगे थे, परंतु मीता वैसी नहीं थी वो अपने दोस्तों के साथ मौज मस्ती करती, लड़कों के साथ गॉसिप करती, बस एक सुबोध ही था जो उससे दूर-दूर रहता था, ये बात उसे रह रहकर खटकती थी। पता नहीं क्यूँ उस रैगिंग की घटना के बाद से वह उसकी ओर आकर्षित हुई थी। सुबोध भी दिखने में अच्छा खासा था। शायद पारिवारिक कारणों से अथवा अन्य किन्हीं कारणों से वो ऐसा बिहेव करता था। जब कभी सुबोध अकेला बैठा रहता मीता उसे एकटक देखती। आते-जाते वक्त सीढ़ियों में, लाइब्रेरी में वो उसके सामने आ जाती। सुबोध को थोड़ा ये अहसास हो गया था कि मीता उसे पसंद करने लगी है।
एक दिन लाईब्रेरी में मीता ठीक उसके सामने बैठ गई और उसे एकटक देखने लगी।
देखिए मीता जी। इस तरह मुझे देखना बंद कीजिए, मैं डिस्टर्ब होता हूँ। सुबोध ने कहा।
क्यूँ आपको देखना गुनाह है क्या ?
जिस तरह आप मुझे देखती है गुनाह ही है।
अच्छा मैं आपको कैसे देखती हूँ बताओ जरा। मीता चहककर बोली।
आप मुझे गलत निगाहों से देखती हैं। सुबोध बोला।
अच्छा, गलत निगाह क्या होती है। मीता उचक कर पूछी। वो सुबोध की बात का पूरा मजा ले रही थी।
मतलब गंदी निगाह। सुबोध हिचकिचाते हुए बोला
गंदी निगाह, पर मैं तो आपके बारे में बहुत ही अच्छा सोचते हुए देख रही हूँ। वो हंस रही थी।
भगवान के लिए अब बस करिए मैं नहीं जानता आप किस निगाह से मुझे देख रही हैं।
मीता हंसने लगी - सिर्फ एक शर्त पर ?
अच्छा ओर वो क्या शर्त है ?
आपको मुझे अपने साथ बिठाकर पढ़ाना पडे़गा।
और अगर मैं नहीं बोल दूँ तो ?
तो और भी ज्यादा गलत निगाह से देखूँगी, सोच लो।
अच्छा ठीक है मैडम, मैं आपको पढ़ाऊँगा।
वो दोनो अब लाइब्रेरी में साथ बैठकर पढ़ने लगे। वैसे तो मीता पढ़ने में होशियार थी लेकिन सिर्फ सुबोध के साथ पाने के लिए वो उसके पास आकर बैठती थी।
मीता अकसर उसे देखते रहती वह खुद भी पढ़ने में अच्छी थी और कभी लोक सेवा आयोग की परीक्षा दिलाकर अधिकारी बनने की ख्वाहिश रखती थी।
सुबोध का यूँ पढ़ाई के प्रति लगाव, शांत, गंभीर स्वाभाव उसे आकर्षित करता था। उसे सुबोध सबसे अलग लगता। मीता को तो असल में पता ही नहीं चला कि वो कब सुबोध के आकर्षण में बंध गई। अकेले में भी सुबोध का चेहरा याद आते ही उसके मुख पर मुस्कुराहट आ जाती थी। कुल मिलाकर मीता के दिल में सुबोध के लिए जगह बन गई थी परंतु सुबोध हमेशा लड़कियों से बात करने में कतराते रहता, जैसे उसे लड़कियों से बात करना आता ही नहीं था। कोई उत्सुकता भी नहीं थी जैसे की कॉलेज में लड़को में होती है जब लड़कियाँ उनकी ओर आकर्षित होती है। ना जाने किस मिट्टी का बना है ये लड़का, मीता अक्सर सोचती।
एक दिन कॉलेज गार्डन में दोनों टहल रहे थे कि अचानक सुबोध का पैर एक पत्थर से टकरा गया। वो जोर से चीखा।
क्या हुआ सुबोध ? मीता ने पूछा।
आह। मेरे पैर में चोट लग गई है। वह नीचे बैठ गया उसके अंगूठे से खून निकल रहा था।
रूको रूको तुम नीचे बैठो रहो सुबोध। वो दोनो अब फार्मल हो गए थे। मीता ने अपने छोटे रूमाल को उसके अंगूठे पर बाँध दिया।
क्या है इससे खून रूक जाएगा फिर हम मेडीकल रूम में जाकर प्राथमिक उपचार करा लेंगे।
ठीक है चलो। सुबोध बोला।
मीता उसे उठाकर मेडीकल रूम में ले गई।
वो उसके लिए पानी का बॉटल भी ले आई।
प्राथमिक उपचार होने के बाद दोनो वापस आकर गार्डन में पेड़ की छाँव में बैठ गए।
थैक्यूँ मीता।
थैंक यू किसलिए सुबोध ?
आज तुमने मेरी बड़ी मदद की। आज तो तुमने मुझे प्रभावित कर दिया। तुम्हारा दिल बहुत उदार है मीता। मैं तुम्हें जीवन भर याद रखूँगा।
याद क्यों रखना सुबोध ? मुझे ही रख लो जीवन भर के लिए।
क्या कहा तुमने। सुबोध हतप्रभ था।
मैं तुमसे प्रेम करती हूँ सुबोध और भविष्य में तुमसे शादी करना चाहती हूँ।
सुबोध एकदम शॉक्ड था। उसने अब तक इस विषय में कभी कल्पना नहीं की थी। हालांकि मीता ने कहीं ना कही उसके दिल में जगह बना ली थी परंतु वह इस बात के लिए तो बिलकुल तैयार नही था।
प्लीज सुबोध, मेरी प्रार्थना स्वीकार कर लो।
सुबोध एकदम चुप था। उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करें क्या जवाब दे।
क्रमशः
मेरी अन्य दो कहानियां उड़ान और नमकीन चाय भी matrubharti पर उपलब्ध है पढ़कर समीक्षा अवश्य प्रस्तुत करें - भूपेंद्र कुलदीप।